राजभाषा हिंदी से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों का निर्वाह प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है राजभाषा हिंदी : संवैधानिक प्रावधान और संभावनाएं पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न
राजभाषा हिंदी से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों का निर्वाह प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है

 

राजभाषा हिंदी : संवैधानिक प्रावधान और संभावनाएं पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न

 

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राजभाषा हिंदी : संवैधानिक प्रावधान और संभावनाएं पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि साहित्यकार डॉ कविता रायजादा, आगरा एवं श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, श्री दर्शनसिंह रावत, उदयपुर, राव कुलदीप सिंह, भोपाल, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ रेनू सिरोया, जयपुर ने की। यह संगोष्ठी हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत आयोजित की गई।

 

डॉ कविता रायजादा, आगरा ने कहा कि राजभाषा हिंदी का व्यावहारिक धरातल पर लाने के लिए संकल्पित होने की आवश्यकता है। हिंदी को लेकर लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाना होगा।

 

प्रमुख वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय संविधान की आत्मा में हिंदी और भारतीय भाषाएँ रची - बसी हैं। हिंदी दिवस का वही महत्व है, जो संविधान दिवस का है। राजभाषा हिंदी से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों का निर्वाह प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है। संघ और अनेक राज्यों में राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग के लिए समुचित व्यवस्था की गई है, उसके क्रियान्वयन के लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता पैदा करने की जरूरत है। हिंदी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं को प्रशासन, शिक्षा, भर्ती, प्रशिक्षण एवं कानून के क्षेत्र में स्थान मिलना चाहिए, जिसकी वे अधिकारिणी हैं। उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी की बाध्यता से मुक्ति मिलनी चाहिए। वर्तमान में राजभाषा हिंदी के विकास के लिए भारतीय भाषाओं के साथ उसके रिश्तों को और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है।

मुख्य अतिथि श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि हिंदी को लेकर पूर्वजों ने कड़ा संघर्ष किया है। हिंदी से जुड़े दायित्वों का सुव्यवस्थित निर्वाह करने के लिए भाषा प्रेमी आगे आएं।

 

प्रवासी साहित्यकार श्री शरद चन्द्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि विश्व के सभी देशों में राजभाषा से जुड़े प्रावधानों का कर्तव्यनिष्ठा के साथ पालन किया जाता है। स्कैंडिनेवियन देशों में विभिन्न राजभाषाओं का शासन, प्रशासन और शिक्षा में समुचित प्रयोग हो रहा है। 

 

श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि महाराष्ट्र में राजभाषा मराठी के माध्यम से पर्याप्त प्रशासकीय कार्य हो रहा है।

 

इस अवसर पर श्री दर्शनसिंह रावत, उदयपुर, राव कुलदीप सिंह, भोपाल, डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने अपने उद्बोधन में हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग की आवश्यकता पर बल दिया। 

 

संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। स्वागत भाषण एवं संस्था परिचय डॉ अमृता अवस्थी, इंदौर ने दिया। 

 

संगोष्ठी में मुक्ता कौशिक, रायपुर, वी के मिश्रा, संगीता तिवारी, महमूद पटेल,  अशोक सिंह, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ भरत शेणकर, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर,  श्री अनिल ओझा, इंदौर, प्रभा बैरागी, शम्भू पंवार, झुंझुनूं,  रागिनी शर्मा, इंदौर, डॉ शैल चंद्रा, डॉ ममता झा, विनोद विश्वकर्मा, अरुणा शुक्ला, ज्योति सिंह, आलोक कुमार सिंह, संदीप कुमार,  मनीषा सिंह, मीर सैयद, आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।

 

प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉक्टर संगीता पाल, कच्छ ने की।

 

कार्यक्रम का संचालन शिवा लोहारिया, जयपुर ने किया। आभार प्रदर्शन श्री शम्भू पंवार, झुंझुनूं ने किया।