विश्व मे बढ़ती "भारतीय जीवनशैली" की स्वीकार्यता*
*गोपाल सोनी
121 बहादुर गंज उज्जैन*
आज सम्पूर्ण विश्व कोरोना वाइरस से जूझ रहा है। 200 से अभी अधिक देशो में इस जानलेवा वाइरस ने अपने पैर पसार लिए है जिस पर नियंत्रण पाने की वे हर संभव कोशीश कर रहे है। इस घातक वाइरस ने जहा मानव के जीवन को संकट में डाल दिया है वही इसके कुछ अच्छे बिंदु भी व्यक्ति के सामने आ रहे है। आज सम्पूर्ण विश्व मे लोग जो पाश्चात्य जीवन शैली को तेजी से अपने जीवन मे अपनाते जा रहे थे इस कोरोना संकट काल में उनका ध्यान अब वापस भारतीय जीवन शैली की ओर गया है। स्वयं को बुद्धिशाली ओर विकसित कहने वाले देश आज भारत की जीवन पद्धति को धीरे धीरे आत्मसात कर रहे है। लाखो वर्षो से भारत की जीवन शैली पूर्णतः वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित रही है जन्म से लेकर मृत्यु तक ओर सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक इतने महत्वपूर्ण नियम बने है जिनका वर्षो से पालन करते हुए प्रत्येक भारतवासी स्वस्थ और प्रसन्नचित्त रहता आया है। परंतु विदेशी संस्कृति के घालमेल ओर सनातन संस्कृति के दुष्प्रचार के चलते हम अपनी इतनी ऊंची जीवनशैली को भूलते चले गए। आज जब पूरे विश्व मे कोरोना संकट काल आया तो दुनिया ने फिर से भारतीय जीवन शैली को धीरे धीरे अपनाया।
सम्पूर्ण विश्व मे आज जिस भारतीय जीवनशैली को अपना रहे है आइये हम उसे नीचे दिए गए निम्न बिन्दुओ के माध्यम से समझते है :-
* दुनिया ने अपनाया "नमस्ते" :- आज सम्पूर्ण विश्व भारतीय जीवन शैली को अपनाने के लिए मजबूर हो रहा है। भारतीय जीवन शैली का मूल मंत्र सदैव से ही लोगो को जोड़ने का रहा है ओर वर्तमान समय मे भी यही सिद्ध हो रहा है। सम्पूर्ण विश्व मे लोग जब भी मिलते थे तो एक दूसरे का अभिवादन हाथ मिलाकर किया करते थे किन्तु वर्तमान समय मे लोग एक दूसरे का अभिवादन हाथ जोड़कर "नमस्ते" करके कर रहे है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प से लेकर प्रिंस चार्ल्स, इसराइल के राष्ट्रपति नेतन्याहू, फ्रांस, रूस, हालेंड, आइसलैंड आदि सभी के राष्ट्राध्यक्ष लोगो का अभिवादन नमस्ते करके रहे है और लोगो को ऐसा करने के लिए प्रेरित भी कर रहे है। यह तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी पूरे विश्व के लोगो को एक दूसरे का अभिवादन हाथ जोड़कर नमस्ते करके ही करने की सलाह दी है जिसे कई देशों में अमल में भी लाया जा रहा है।
* आयुर्वेद का सेवन :- भारतीय चिकित्सा पद्धति लाखो वर्षो से आयुर्वेद आधारित रही है इसके नियमो का पालन करते हुए मनुष्य हमेशा से अपने आप को स्वस्थ रखता आया है। वर्तमान समय में भी कोरोना संकट काल मे आयुर्वेद एक आशा की किरण बनकर उभरा है। भारत के घर के प्रत्येक रसोई घर मे कई प्रकार की औषधियां पाई जाती है जिनसे सेवन से मनुष्य के रोग प्रतिरोध की क्षमता अच्छी रहती है और वो रोगों से मुक्त रहता है। इन औषधियों में हल्दी, जीरा, अजवाइन, धनिया, सौफ, काली मिर्च, लोंग, दालचीनी आदि जो हमारे भोजन को स्वादिष्ट भी बनाते है और हमारे स्वास्थ को भी बढ़ाते है। विशेषज्ञो के अनुसार अगर व्यक्ति दूध में हल्दी का भी प्रतिदिन सेवन करे, प्रतिदिन दो से तीन लहसुन की कच्ची कली भी खाए तो उसको कोरोना के खतरे का लगभग प्रभाव नही होगा। और लोग इस पद्धति को अपना भी रहे है। इसके साथ ही सबसे ज्यादा तुलसी के ड्राप का भी लोगो के द्वारा बहुत इस्तेमाल किया जा रहा है। जिससे कि लोगो के रोग प्रतिरोध की क्षमता बड़े। भारत के लोगों द्वारा इन आयुर्वेदिक नुस्खों का वर्षो से उपयोग किया जा रहा है। हाल ही में वैज्ञानिको ने अपने शोध के माध्यम से ये बताया भी था कि दुनिया मे अन्य देशों के मुकाबले भारतीय लोगो के शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता अधिक है ओर ये शोध भारतीय जीवन शैली की गुणवत्ता को सिद्ध करता है।
* ध्यान योग और प्राणायाम :- ध्यान योग और प्राणायाम भी भारतीय जीवनशैली का एक अभिन्न अंग है। व्यक्ति अपने आप को स्वस्थ रखने ओर तनाव से मुक्त करने के लिए इस पद्धति का प्रयोग वर्षो से करता आ रहा है। प्राचीन काल मे हमारे श्रेष्ठ ऋषि-मुनियों ने इस पद्धति को हमे प्रदान किया था जिसका लाभ आज सम्पूर्ण विश्व उठा रहा है। रामायण में भी हमे ध्यान योग का प्रसंग देखने को मिलता है। ध्यान योग ओर प्राणायाम के माध्यम व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होने के साथ साथ मानसिक प्रबलता भी प्राप्त होती है, सकारात्मकता प्राप्त होती है, ऊर्जा का संचार होता है और स्वास्थ्य लाभ भी होता है। वैज्ञानिको का मत है कि इसे करने से रोग प्रतिरोध क्षमता भी बढ़ती है। ज्ञात रहे दुनिया ने भी भारत के योग की शक्ति को स्वीकार किया है और विश्वभर के लोग इसे अपनाए इस हेतु 21 जून को विश्व योग दिवस भी घोषित किया गया है।
* शाकाहार भोजन :- भारतीय जीवन शैली में कभी भी मांसाहार भोजन को स्वीकार्यता नही मिली है। भारतीय जीवन पद्धति में सदैव शाकाहार भोजन को ही प्रधानता मिली है। विश्व के अनेक लोगो का कहना है कि वे मांसाहार भोजन इसलिए करते है क्योंकि जो स्वास्थवर्धक तत्व उन्हें चाहिए वो केवल इन्ही भोजन से मिलता है परंतु सच तो ये की शाकाहार भोजन में वे सभी तत्व सम्मिलित है जो व्यक्ति के स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है। वैज्ञानिको का ये मानना है कि कोरोना नामक भयंकर वाइरस एक चमगादड़ से आया है। जिसे चीन में अपने भोजन में बड़े शोक से शामिल किया जाता है। ओर एक वैज्ञानिक शोध के अनुसार मांसाहार करने वाले व्यक्तियों में कैंसर के बढ़ने की संभावना 70% तक हो जाती है। वही एक अन्य शोध में भारतीय शाकाहारी भोजन की थाली को सबसे अधिक पोष्टिक कहा गया है। अगर लोग मांसाहार की जगह शाकाहार भोजन को अपना ले तो भविष्य में ऐसी समस्या पर काफी नियंत्रण पाया जा सकता है।
क्वारेंटीन (संगरोध) प्रक्रिया :- विज्ञान की ये यह मान्यता है कि "बीमारी की रोकथाम या बचाव इलाज से बेहतर है" ओर आज भारत भी इसी नियम का पालन सख्ती के साथ कर रहा रहा है। असल मे क्वारेंटीन (संगरोध) भारत की जीवनशैली का एक हिस्सा रहा है जिसे हम आज तक अपना रहे है। भारत मे व्यक्ति के जन्म और मृत्यु के समय ये प्रक्रिया आवश्यक होती है जिसे हम "सूतक" के नाम से जानते है। व्यक्ति का जब जन्म होता है तब बच्चे और उसकी माँ दोनों को ही कुछ दिनों तक अलग अलग रखा जाता है ताकि किसी दूसरे व्यक्ति के विष्णु उन्हें न लग पाये। वही जब किसी व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती है तो "सूतक" के नियमो का पालन किया जाता है। शव में विषाणु होते है जो दूसरों के लिए घातक सिद्ध हो सकते है इसलिए इस नियम का पालन भारतीय जीवनशैली में वर्षो से अपनाया जा रहा है।
* अलग अलग बैठकर भोजन करना :- भारतीय लोगों के द्वारा भोजन में सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता आ रहा है। अगर हम अपने घर परिवार में गौर करे तो देखेंगे कि जब भोजन करते है तो भोजन करते समय प्रति व्यक्ति अपनी अपनी अलग थालियों में भोजन करता है, हम किसी दूसरे व्यक्ति की थाली में ना तो कुछ झूठा भोजन परोसते है ओर न ही झूठा भोजन लेते है। इसके पीछे ये वैज्ञानिक तर्क ये भी है कि प्रत्येक व्यक्तियों में विषाणु होते है ये विषाणु एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रवेश न करे इसलिए इस नियम का पालन किया जाता रहा है। ईरान में भी कोरोना के फैलने के लिए एक कारण वहां लोगो का एक साथ बैठकर भोजन करना बताया जा रहा है।
* हवन करना :- हजारो लाखो वर्षों से भारत मे हवन करने की परंपरा सतत जारी है। हमारे ऋषि-मुनियों के द्वारा समय समय पर हवन पूजन इत्यादि किया जाता है। हवन करने का आध्यात्मिक पहलू तो है परंतु वैज्ञानिक पहलुओं पर प्रकाश डालें तो इसके कई फायदे भी है। रशिया के वैज्ञानिक ने अपने शोध के माध्यम से बताया है कि गाय का 10 ग्राम देसी घी हवन में डालने पर 1 टन आक्सीजन निकलती है जो पर्यावरण के लिए बहुत फायदेमंद है। हवन में गूगल, कपूर, आम की लकड़ी, तिल आदि जड़ी बूटी डालने पर उस क्षेत्र के आप पास के जीवाणु नष्ट हो जाते है। यही नही दुनिया मे "अग्निहोत्र" नाम से अनेक देशों में हवन किये जा रहे है। जर्मनी में तो एक बंजर भूमि में हवन करके उसकी राख को भूमि में डाला गया जिससे जमीन उपजाऊ हो गई। कोरोना वाइरस में भी हवन करने से इसके सकारात्मक फायदे देखे गए है। इससे आसपास के जीवाणु तो नष्ट होते ही है अपितु उस क्षेत्र में सकारात्मकता का वातावरण भी स्थापित हो जाता है।
* अग्निदाह संस्कार:- सदियों से इस संस्कार का पालन भारतीय जनमानस करते आ रहे है। जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो भारतीय संस्कार के अनुसार उसका अंतिम संस्कार जलाकर किया जाता है। भारत मे इसकी एक अवधारणा तो ये है कि मृत शरीर को पंचतत्व में विलीन कर दिया जाता है वही दूसरी ओर मृत शरीर के जल जाने से विष्णु भी खत्म हो जाते है। जमीन में शव गाड़ने से विषाणुओ के फैलने का खतरा होता है, जमीन में स्थित पानी मे उन विषाणुओ के होने का भी खतरा बढ़ जाता है साथ ही कब्रिस्तान की संख्या भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है। चीन ने भी अपने देश में मरने वाले लोगो का अंतिम संस्कार जलाकर करने के निर्देश दिए है, फिर चाहे वे किसी भी धर्म विशेष कस क्यों न हो उन्हें मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार जलाकर ही करना पड़ रहा है।
ये कहते हुए बड़ा ही दुःख हो रहा है कि इतनी वैज्ञानिक जीवन पद्धति होने के बावजुद भी हमारे ही देश के लोगो धीरे धीरे इसे अस्वीकार करने लग गए थे और पाश्चात्य जीवन शैली की ओर भागने लग गए। परंतु आज जब विश्व मे कोरोना संकट कहर बरपा रहा है तब जाकर सम्पूर्ण विश्व के लोगो का भारतीय जीवनशैली की ओर ध्यान आया है और इसे अपनाया भी जा रहा है। भारतीय जीवनशैली ने ये सिद्ध कर दिया कि लोग चाहे कितना भी विकास और तरक्की कर ले परंतु यदि उन्हें अपना स्वास्थवर्धक ओर सुखमय जीवन व्यतीत करना है तो इस महान जीवनशैली को अपनाना ही होगा।।