क्या खतरे में है प्रिंट मीडिया का भविष्य?
प्रिंट मीडिया का भविष्य क्या है? तेजी से होते डिजिटलाइजेशन के बीच यह सवाल अक्सर पूछा जाता है। कई बड़े अखबार बंद हो चुके हैं, कुछ ने अपना दायरा सीमित कर लिया है. प्रिंट मीडिया का भविष्य क्या है? तेजी से होते डिजिटलाइजेशन के बीच यह सवाल अक्सर पूछा जाता है। कई बड़े अखबार बंद हो चुके हैं, कुछ ने अपना दायरा सीमित कर लिया है और कुछ इस पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। यदि हम बीते दिनों जारी किए इंडियन रीडरशिप सर्वे के परिणामों पर नजर डालें, तो चिंता और भी बढ़ जाती है। इस *सर्वे के मुताबिक, ‘दैनिक जागरण’ की 2019 की तीसरी तिमाही में एवरेज इशू रीडरशिप 1.75 करोड़ थी, यानी दूसरी तिमाही से 3.6 प्रतिशत और पहली से 13.6 प्रतिशत कम। एवरेज इशू रीडरशिप पाठकों की वह संख्या है, जिसने पिछले दिन अखबार पढ़ा है, जबकि कुल रीडरशिप का मतलब है उन लोगों की संख्या, जिन्होंने पिछले 30 दिनों में कम से कम एक बार अखबार पढ़ा है। वैसे बात केवल जागरण की ही नहीं है, कई दूसरे अखबारों की स्थिति भी खराब है। हिन्दुस्तान की एवरेज इशू रीडरशिप पिछले वर्ष की पहली दो तिमाहियों में 21 प्रतिशत गिरकर 1.46 करोड़ हो गई, इसी अवधि में अमर उजाला की रीडरशिप में 4.8 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि मलयमाला मनोरमा में आठ प्रतिशत, ‘राजस्थान पत्रिका’ में 10 प्रतिशत और ‘ईनाडु’ की रीडरशिप में 21 फीसदी गिरावट दर्ज की गई।*
हालांकि, पाठकों की संख्या में गिरावट के बावजूद, ‘दैनिक जागरण’ भारत का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला समाचार पत्र बना हुआ है, जबकि ‘मलयाला मनोरमा’ 89.81 लाख की एवरेज इशू रीडरशिप के साथ सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला क्षेत्रीय दैनिक है। केवल चार समाचार पत्रों- ‘दैनिक भास्कर’, ‘दैनिक थांथी’, ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘लोकमत’ ने जरूर तीसरी तिमाही में अपनी पाठक संख्या में वृद्धि देखी, लेकिन मामूली। रीडरशिप में 0.55% की वृद्धि के साथ ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने सबसे अधिक पढ़े जाने वाले अंग्रेजी के रूप में अपना स्थान बरकरार रखा है।मुंबई, दिल्ली और कोलकाता, इन तीन बड़े बाजारों में, लगभग हर प्रमुख अंग्रेजी अखबार ने अपनी पाठक संख्या में गिरावट देखी है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ 12.92 लाख की पाठक संख्या के साथ मुंबई के बाजार पर अभी भी राज कर रहा, लेकिन यह आंकड़ा दूसरी तिमाही के 13.17 लाख के मुकाबले कम है। TOI के निकटतम प्रतिद्वंदी ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ को भी नुकसान उठाना पड़ा है। अखबार की एवरेज इशू रीडरशिप दूसरी तिमाही के 8.69 लाख से घटकर तीसरी तिमाही में 8.59 लाख पर पहुंच गई है। दिल्ली में, ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ दोनों अपने पाठकों की संख्या में तीन फीसदी की कमी के साथ क्रमश: 10.76 लाख और 9.28 लाख पर हैं।
अखबारों के पाठकों में आ रही कमी की तमाम वजह हैं। पहली तो यही कि आजकल सबकुछ ऑनलाइन हो गया है। लोग खबरें भी चलते-चलते पढ़ना पसंद करते हैं। इसके मद्देनजर कई मीडिया संस्थानों ने अपने प्रिंट संस्करण बंद करके पूरा ध्यान डिजिटल मीडिया पर केंद्रित कर लिया है। उदाहरण के तौर पर DNA ने पुणे के बाद मुंबई, अहमदाबाद में भी अपना प्रिंट कारोबार समेट लिया है, अब वह केवल ऑनलाइन मौजूद है।*इसी तरह ‘डेक्कन क्रोनिकल’ और ‘लोकमत समाचार’ ने अपने कई संस्करण बंद कर दिए हैं। कुछ साल पहले भास्कर समूह के अंग्रेजी अखबार ‘डीबी पोस्ट’ को भी बंद कर दिया गया था। ‘लोकमत’ समूह ने एक ही झटके में अपने हिंदी अखबार ‘लोकमत’ समाचार के पुणे सहित कुछ संस्करणों पर ताला लगा दिया था। इसके अलावा, सख्त सरकारी नीतियों और कम होते राजस्व ने भी प्रिंट मीडिया का खेल बिगाड़ा है।* पिछले साल के आम बजट में अखबारी कागज पर लगाए गए 10 प्रतिशत आयात शुल्क ने पहले से ही संघर्षरत समाचार पत्रों को बड़ा झटका दिया था। हालांकि, नेशनल न्यूजपेपर सोसाइटी के विरोध के बाद इस बार के बजट में इसे घटाकर पांच फीसदी कर दिया गया है, लेकिन जानकारों का मानना है कि सरकार ने फैसला लेने में बहुत देर लगा दी।
#प्रकाश हिंदुस्तानी, इंदौर#